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एक युवती के सफर की सच्चाई : सच्ची पहल समाचार की विशेष रिपोर्ट

                                            "सफर"                      

उम्र 20 वर्ष ,बस  जिसमें सभी सीटों पर सवारियां बैठी थी।स्वभाव से संकोची होने की वजह से किसी से कह नही पायी की plz थोड़ा खिसक जाइये जिससे मैं भी बैठ जाऊं।
हाथ मे किताबें बी.एड.के लेसन देने पास के गांव के स्कूल जा रही थी
तभी अचानक एक भद्र पुरुष अचानक जगह बनाते हुए बोले इधर बैठ जाइए।पसीने से तर बतर मैं मन ही मन उनका धन्यवाद देते हुए बैठ गयी और उन को धीरे से thnx भी बोल दिया।
अभी बस चले थोड़ी देर ही हुई थी कि उन सज्जन की कोहनी का स्पर्श मुझे अपने शरीर पर हुआ मैंने थोड़ा खिसकते हुए उनको देखा वो बेखबर सामने देख रहे यह मैंने सोचा कि गलती से हुआ होगा।थोड़ी देर बाद फिर वही हरकत अब मैने फिर उन को देखा ,इस बार उनकी आंखों में अजीब सी वहशियत दिखाई दी जो हर लड़की या औरत पहचान लेती है।होंठो पे भद्दी सी मुस्कान।जी तो हुआ कि खींचकर एक थप्पड़ रसीद कर दूं पर वो हिम्मत नही थी,मैं चुपचाप उठ गई और आगे जाकर खड़ी हो गयी।लोगो की भीड़ के बीच में भी वही हाल जान बूझकर आदमी जो शायद मेरे पिता की उम्र के होंगे धक्के के बहाने शरीर को छूने की कोशिश करते।
इतने में कंडक्टर ने मेरी परेशानी को देखते हुए ,अपनी सीट पर मुझे बिठा दिया और खुद टिकट काटने चला गया।
मैंने मन ही मन उस का शुक्रिया अदा किया।
अगले दिन फिर वही बस वही सफर वही भीड़ मन घबरा रहा था तभी कंडक्टर की आवाज़ आयी मैडम जी मेरी सीट पर बैठ जाइए।तीन चार दिनों तक ये सिलसिला चला,उसको मैंने बताया कि मुझे 15 दिन तक जाना होगा।
आज बस में भीड़ नही थी ।मैं रोज़ की तरह कंडक्टर की सीट पर बैठ गयी।थोड़ी देर में टिकट काटने के बाद वो भी आ के बैठ गया।उसे पता था कि मुझे अब दो दिन ही और जान है ,इसलिए बातें करने लगा उसका बात करने का ढंग मुझे अजीब लग बातों ही बातों में उसने मेरा फोन no जानना चाहा जब मैंने देने से इनकार किया तो उसके तेवर बदल गए वो चुप बैठ गया।पर उसकी निगाहों में मुझे वही गंदगी दिखाई पड़ी ,जैसे तैसे मैंने वो दिन काटा, अगले दिन फिर बस में भीड़ कंडक्टर ने बिल्कुल अनजान बनते हुए रूखे शब्दों में कहा मैडम आप कहाँ जाएंगी,खड़े जाना होगा सीट नही है......
उम्र 30 साल ट्रेन का सफर ससुराल से पीहर जा रही थी।सीट रिज़र्व थी सो बैठ गयी।थोड़ी देर में पास की सीट पर एक सज्जन आये अधेड़ उम्र के।कुछ देर बाद अचानक बोले-"आप श्रीवास्तव जी की बेटी है क्या"??
मैंने कहा- "नहीं "
इस पर वो बोले -"आप रायपुर नही रहती"??
मैंने फिर मना किया,तो बोले कि -देखिये ईश्वर क्या कमाल करता है एक जैसे चेहरे बनाता है आप की शक्ल बिल्कुल उन की लड़की से मिलती है"
मुझे आश्चर्य और खुशी हुई।बातों का सिलसिला चला मैंने भी अपने बारे में बताया उन ने भी।अगली स्टेशन पर गाड़ी रुकने पर उनने मुझे पानी लाकर दिया और बहुत मना करने के बाद भी चाय के दो कप ले आये।
रात होने आई थी मेरी स्टेशन रात 1 बजे आएगी ये सोचकर मैंने आंखें मूंद ली कि एक झपकी ले लूं स्लीपर नही था ऐसे ही सिर टिकाकर सो गई ,सभी यात्री सो चुके थे।गहरी नींद लगी ही थी कि अचानक लगा जैसे किसी का हाथ मुझे छू रहा है घबरा कर आंखें खोली तो देखा वही सज्जन ,आंखों में काम वासना,बोले सब सो रहे है डरो मत...इतना सुनना ही था कि मैं सीट से उठ खड़ी हुई।
पर जाउंगी कहाँ अपनी सीट छोड़ के सोचकर आंखों में आंसू आ गए।अभी 1 बजने में 2 घंटे बाकी थे।
मैंने अपना बैग उन महाशय और अपने बीच रखा । और वो दो घण्टे जागकर निकाले।
उम्र 45 साल अब मैं जान चुकी थी कि लोग सफर में अकेली औरतों का किस कदर फायदा उठाते है।
आज मेरी जगह कोई और लड़की मेरी स्थिति में थी उसे ऐसे ही किसी आदमी ने जगह दी वो उससे हँस हँस के बातें कर रही थी उस आदमी ने उसे खूब कोल्ड ड्रिंक,नाश्ता लाकर दिया और उतरने से पहले उसका मोबाइल no भी ले गया।मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ मैंने उससे पूछा तुम उसको जानती थी क्या?
वो बड़ी लापरवाही से बोली -नहीं आंटी
मैंने कहा वो तुमको किसी न किसी बहाने छू रहा था तुमको बुरा नही लगा??तो बोली- "आंटी ये रोज़ की बात है सफर में ऐसा अक्सर होता है पर सफर तो करना है"...।
मैंने कहा -"पर mob no भी दे दिया तुमने"…
तो हँसने लगी बोली- "आंटी ब्लॉक कर दूंगी न कुछ डेढ़ होशियारी दिखाई तो"...
उसके चेहरे पर कोई तनाव नही था।जैसे आम बात हो।
मैं सोच रही थी कितना फर्क आ गया है हमारी सोच में।समय बदल गया है और विचार भी।पता नही मैं सही थी या ये??
घर आई सारा किस्सा पति को सुनाया तो बोले -ये तो आम बात है पहले आदमी औरतों को मूर्ख बनाते थे "आज लड़कियां उनको मूर्ख बना कर अपना मतलब सिद्ध कर रही है"
मैंने कहा कि पर सही क्या है वो या ये??
तो बोले -"दोनों नहीं"
तुम डरती थी बोल नही पाती थी वो गलती थी तुम्हारी,आज की लड़कियां बोलना जानती है पर कुछ अपने स्वार्थ के पीछे  उनकी कुछ गलत बातों को नज़र अंदाज़ कर देती है जिससे उनको बढ़ावा मिलता है।
हमको आगे बढ़ना चाहिए पर अपने उसूलों को मारकर नही,अपनी आत्मा जिस बात के लिए न माने उस बात से कभी समझौता नही करना है,यही हम अपनी बेटी को सिखाएंगे जब वो बड़ी होगी।
यदि दुनियाँ की भीड़ में चलना है तो अपनी जगह हम खुद बनाएंगे उसके लिए किसी प्रकार का समझौता नही करेंगे।
मुझे भी लगा कि ये सही है ,मंज़िल पर पहुंचने के लिए रास्ते मे कांटे तो आएंगे,उनके डर से न तो रास्ता छोड़ना है ना उन से लहू लुहान होना है उनको हटा फेंकना है दूर.....

साभार अनिता जी

सच्ची पहल समाचार की विशेष रिपोर्ट : पूजा भाटी  फरीदाबाद

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